रीतिकाल क्या है? और उसकी प्रमुख विशेषताएँ II ritikal ki visheshta II ritikal ki paristhitiyon II ritikal ka namkaran II ritikal ki pravritiyan II ritikal ka naamkaran sankshep mein likhe II ritikal ke kavi aur unki rachnaye II रीतिकाल की परिभाषा II रीतिकाल का परिचय


   रीतिकाल क्या है? और उसकी प्रमुख विशेषताएँ II ritikal ki visheshta II ritikal ki paristhitiyon II ritikal ka namkaran II ritikal ki pravritiyan II ritikal ka naamkaran sankshep mein likhe II ritikal ke kavi aur unki rachnaye II रीतिकाल की परिभाषा II रीतिकाल का परिचय


रीतिकाल में श्रृंगार परक रचनाएँ अधिक हुई है इसका कारण तत्कालीन समय का परिवेश राजा, नावाब और सामंत लोगों का वर्चस्व था वहीँ कवि अपनी जीविका का साधन काव्य रचनाओं को मानते थे और आश्रदाता की रूचि के अनुसार उनके मनोरंजन का साधन काव्य रचनाओं को मानते थे और अश्रादाता की रूचि के अनुसार उनके मनोरंजन के साधन के रूप में काव्य रचना की जाती थी. 
आचार्य शुक्ल ने संवत 1700 से 1900 तक के काल को ‘रीतिकाल’ अथवा ‘उत्तर मध्यकाल’ नाम से संबोधित किया है. रीतिकाल में ‘रीति’ (रीतिकाल का क्या अर्थ है)शब्द का प्रयोग ‘काव्यांग निरूपण’ के अर्थ में हुआ है. रीतिकाल में रचित ग्रन्थ जिनमें ‘काव्यांगो के लक्षण’ और उदारहण दिये जाते हैं उसे ‘रीतिकाल कहलाते हैं. रीतिकाल के अधिकतर कवियों ने रीतिनिरूपण करते हुए लक्षण ग्रन्थ लिखे, अत: इस काल की प्रधान विशेषता ‘रीति निरूपण’ को माना जा सकता है. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के कालों के नामकरण प्रधान विशेषता के आधार पर किए हैं, अत: रीति की प्रधानता के कारण इस काल का नामकरण उन्होंने रीतिकाल किया है. रीति के उनका रीतिकाल तात्पर्य पद्धति, शैली और काव्यांग निरूपण से है.

रीतिकाल का समय मुगलों के वैभव, पराभव अथवा पतन और अंग्रेजों के उदय का काल है. सामंतवादी प्रवृत्ति का बोलबाला इस काल में था और सामंतवाद के दोष सर्वत्र व्याप्त थे. एक ओर विलासी शासकों, सामंतों, अधिकारियों एवं मनसबदारों का बोलबाला थादूसरे ओर गरीब जनता पिस रही थी. विलासिता की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण नारी को संपत्ति माना जाने लगा था. कवि अपने समय का सजग चितेरा होता है. रीतिकालीन के कवियों ने भी अपने समय से भरे रहते थे. कवि अपने समय का सजग चितेरा होता है. रीतिकाल अधिकतर कवि राजाश्रय में रहते थे अत: इन कवियों की संपूर्ण अंतश्चेतना सुरा, सुन्दरी और सुराही तक ही सीमित रह गयी. उन्होंने अपनी योग्यता का विस्तार


रीतिकाल को तीन भागों में बांटा गया है : ritikal ke kavi kaun hai, ritikal ke bhed, रीतिकाल का वर्गीकरण, रीतिकाल को कितने भागों में बांटा गया, रीतिकाल कितने भागों में बांटा गया, रीति काव्य की प्रमुख धाराओं का परिचय दीजिए


a.    रीतिबद्ध काव्य (लक्षण काव्य) :

प्रमुख कवि:  रीतिकाल के कवि,


क.  चिंतामणि 
ख.  केशवदास 
ग.   मतिराम 
घ.   देव 
ङ.    पद्माकर 
च.   भिखारीदास 
छ.  ग्वाल 

b.    रीतिसिद्ध काव्य (लक्ष्य काव्य) 

प्रमुख कवि: 
क.  बिहारी 
ख.  रसनिधि 
ग.   नृपशंभू 
घ.   नेवाज 

c.     रीतिमुक्त काव्य (स्वच्छंद काव्य) 

प्रमुख कवि:

क.  घनान्द 
ख.  आलम 
ग.   ठाकुरदास 
घ.   बोधा 
ङ.    द्विजदेव 

रीतिबद्ध काव्य की विशेषताएँ : रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएं, रीतिकाल की विशेषताएँ लिखिए, रीतिमुक्त काव्यधारा की विशेषता


रीतिबद्ध काव्य वह काव्य है जो रीति-निरूपण के रूप में लिखा गया हो. इसमें इस काल में लिखे गए वे सभी रीति-ग्रन्थ आ जाते हैं, जिसमें काव्यांगों का पद्दमय लक्षण प्रस्तुत कर उसके उदहारण के रूप में स्वरचित काव्य प्रस्तुत किया गया है. डॉ. नगेन्द्र ने इसे आचार्य कवि कहा है. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे ‘रीतिबद्ध या लक्षणबद्ध काव्य कहते हैं. संस्कृत – काव्यशस्त्र के आधार पर हिन्दी में लक्षण ग्रंथों की रचना करने वाले कवियों को रीतिबद्ध कवि माना जाता है. इन रीतिबद्ध काव्य रचनाकारों का मुख्य उद्देश्य अपने आश्रदाताओं को प्रसन्न करना था, लेकिन अपने काव्य के माध्यम से वे संस्कृत भाषा में वर्णित साहित्यशास्त्र का हिन्दी लोकभाषा में (ब्रजभाषा) अनुवादे करते थे. ये नायक-नायिका और अलंकारों के भेद निरूपण में ही व्यस्त रहे. इस वर्ग में दो प्रकार के कवि हुए. प्रथम वे जिन्हें लक्षण ग्रंथों के साथ लक्ष्य ग्रन्थ भी लिखे. इस वर्ग में आचार्य आते हैं जिहोंने लक्षण ग्रन्थ तो लिखे पर लक्ष्य ग्रन्थ नहीं. इनमें श्रीपति का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है. 


रीतिकाल काल की सामान्य विशेषताएँ :


    1.        श्रृंगारिकता : श्रृंगारिकता इस काव्यधारा की ही नहीं, इस काल के साहित्य की भी सर्वाधिक मुखर प्रवृत्ति रही है. इस काल के कवि ने श्रृंगार रस के विभिन्न अवयवों, विभाव, अनुभाव, संचारी,इत्यादि के वर्णन, नायिका भेदोपभेदों, उनकी सूक्ष्म श्रृंगारिक मन:स्थितियो क उद्घाटन ऋतु आदि के वर्णनों में कवियों ने जितनी सरस और मार्मिक उक्तियाँ प्रस्तुत की है. इस धारा के कवियों ने श्रृंगार के संयोग और वियोग- दोनों ही पक्षों का पूरे मनोवेग से चित्रण किया है. 
    2.       सुदरता का वर्णन : रीतिबद्ध श्रृंगारिकता काव्य के मुख्य आलंबन नायक-नायिका रहे हैं. इन दोनों में नायिका की अंग-ज्योति की ओर कवियों की दृष्टि अधिक रही है. नख-शिख वर्णन के सारे प्रसंग इसके प्रमाण है लेकिन हाव अनुभावादि के चित्रण में यह रूप – सौन्दर्य अधिक मार्मिक होकर सामने आया है. 
    3.        अलंकारिकता : चमत्कार प्रदर्शन की प्रवृत्ति रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्ति रही है. चमत्कार का मतलब ही है अलंकार प्रधान होना. तत्कालीन रीतिबद्ध कवि अलंकारों पर अधिक ध्यान देते था. वह इन अलंकारों पर विशेष ध्यान दिया है जैसे : अनुप्रास, यमक. इससे काव्य में मधुरता आती है. आश्रदाता भी कविता का मर्मज्ञ नहीं होता था. उसे शब्दों के चमत्कार और उसकी गेयता से ही अधिक मतलब होता था. 
    4.        नारीचित्रण : नारी के प्रति रीतिकालन कवियों का दृष्टिकोण भोगवादी रहा है. चाहे रीतिबद्ध कवि देव, मतिराम, केशव हो चाहे रीतिसिद्ध कवि बिहारी हो अथवा रीतिमुक्त कवि घनान्द, बोधा या आलम हो, सभी दृष्टि नारी के प्रति भोगवादी रही है. श्रृंगार भाव की इतनी बेकदरी और नारी के प्रति इतनी गिरी गुई दृष्टि हिन्दी साहित्य में कभी नहीं प्रकट हई. 
रीतिबद्ध कवि दरबारी बनकर जन समाज से कट गये थे. रीतिकालीन कविता इसीलिए समाज के प्रति उपेक्षा पूर्ण दृष्टिकोण रखती है. उसके अश्रदाताओं के लिए नारी का संबल एक विलास स्थल बन गया था. जैसे देव ने कहा है – कौन गनै पुर वन नगर कामिनी एकै रीतिI
 देखत हरै विवेक को चित्त हरै करि प्रीतिII 
    5.            समाज से सर्वथा विमुख कविता 
    6.            पराश्रयिता की भावना 
    7.            प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण 
    8.            राधा-कृष्ण का वर्ण 
 9.            भक्ति, नीति और वीर रस 
10.        अभिव्यंजना पद्धत 
11.         छन्द 
12.        ब्रजभाषा की प्रधानता
 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

प्रमुख महिला कहानीकार और उनके कहानी संग्रह

रीतिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ II रीतिकाल की प्रमुख रचनाओं के नाम बताइए II रीतिकाल की चार प्रमुख रचनाओं के नाम II ritikal ke pramukh kaviyon ke naam II ritikal ke pramukh