राम भक्ति काव्य II रामकाव्य धारा II रामकाव्य की भक्ति धारा II ram kavya ki parampara II ram kavya parampara par tippani II ram kavya parampara par tippani likhiye
राम भक्ति काव्य II रामकाव्य धारा II रामकाव्य की भक्ति धारा II ram kavya ki parampara II ram kavya parampara par tippani II ram kavya parampara par tippani likhiye
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रामकाव्य धारा |
रामकाव्य धारा (ramkavy dhara) – राम को आधार बनाकर
संस्कृत में बहुत से काव्य ग्रंथों और नाटकों की रचना हुई. भारतीय जीवन धारा के
आदर्श पुरुष के रूप में राम प्रतिष्ठित हो चुके थे. ऐसे राम को आदर्श बनाकर गोस्वामी
तुलसीदास ने अपने महान् प्रबंधकाव्य (prabandhkavy) ‘रामचरितमानस’
(ramcharitmans) की रचना की. उन्होंने कवितावली,
गीतावली, दोहावली, रामलला नहछू, बरवै रामायण, (ramayan) विनय पत्रिका (binay
patrika) आदि मुक्तक काव्यों की भी रचना की. पर उनकी अक्षय कीर्ति का आधार
ग्रन्थ ‘रामचरित मानस’ ही है. उसमें राम का जो आदर्श त्यागमय स्वरूप प्रकट
हुआ है वह एक गृहस्थ के लिए आदर्श है तो उनका दुष्टदलन, दृढ़ प्रतिज्ञ और नीतियुक्त
आचरण राजाओं के लिए प्रतिमान है. मानस में काव्य-रसिक गोता लगाते हुए नहीं अघाते
हैं तो धार्मिक जन उसे अपना पंचम वेद मानते हैं. उसमें एक साथ ‘बुध’ और ‘जन’ दोनों
को रिझाने की क्षमता है. मानस आज भारत में ही नहीं,विश्व का एक महान ग्रन्थ माना जाता
है. तुलसी ने राम को मनुष्य न लगातार अवतार के रूप में प्रतिष्ठित किया और मानस के
दिव्य रूप को देखकर यह सहज लगता है कि यह कोई सामान्य कृति नहीं है, बल्कि यह
ब्रह्म का ग्रंथावातर है.
आलोचकों ने मानस की प्रबंध पटुता, भाषा,
शील निरूपण और आदर्श की भूरि-भूरि प्रशंसा की है. पर तुलसी (tulsi
das) ने
प्रबंध काव्य लिखने में जो सफलता प्राप्त की उससे कम सलफता उन्हें ‘विनय पत्रिका’
जैसा गीति काव्य लिखने में नहीं मिली है. दीनता, विनय, आत्म निवेदन, संपर्ण और
भावों की केंद्रीयभूत आर्द्रता जो ‘विनय पत्रिका’ में हमें मिलती है, वह कम
ही काव्यों में मिलती है. तुलसी (tulsi ) को अवधी और ब्रजभाषा
दोनों पर समान अधिकार था. अपने समय की सभी प्रचलित शैलियों में काव्य रचना
करके उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वे एक नैसर्गिक कवि थे. मूलतः वे भक्त
थे. राममय उनका जीवन था. उन्होंने कविता के लिए कविता नहीं लिखी.
उन्होंने राम के लिए कविता लिखी और वह भी इसलिए कि राम से उन्हें ‘स्वान्तःसुख’ की
प्राप्ति होती थी. वे उत्तरी भारत में बुद्ध के बाद सबसे लोकनायक कहे गये है. वे
समाज के हृदय पर ऐसा अधिकार रखते हैं जितना न किसी चक्रवर्ती सम्राट का था और न
किसी धर्म ध्वज मठाधीश का. उनका जो स्थान भारतीय साहित्य में है वह विश्व के किसी
भी साहित्य में किसी अन्य कवि का नहीं है. रामकाव्य धारा में तुलसी
के (sagun bhakti dhara ke kaviyon ke naam)अतिरिक्त ram bhakti
shakha ke kavi (सगुण भक्ति शाखा के कवि) केशवदास
(keshavdas), अग्रदास (agradas) , नाभादास (nabhadas), चरणदास (charandas)
(ram kavya dhara ke kavi) आदि कुछ ( राम भक्ति शाखा
के प्रमुख कवि ) और कवि आते हैं पर
वस्तुतः रामकाव्य धारा में तुलसी की ही महाधारा है. तुलसी उस गंगा
की धारा के समान है जो ‘गंगासागर’ बन जाते हैं.
राम काव्य धारा की विशेषताएँ : सगुण भक्ति काव्य की विशेषता, ram bhakti kavya dhara ki visheshta, ram bhakti dhara ki pravritiyan
1. वैष्णव भक्ति धारा (vaishnv bhakti dhara) के रामानुज के विशिष्टाद्वैतवादी दर्शन पक्ष की निकटता होते हुए भी दर्शन की उलझन से परे रामभक्ति (rambhakti)इनका आदर्श थे.
2. विष्णु के अवतारी रूप राम की प्रतिष्ठा और उनकी भक्ति मुख्य प्रतिपाद्द है. राम (ram) का अवतार और उनकी लोकलीला का भक्तिमय वर्णन मिलता है.
3. राम अवतरित ब्रह्म होते हुए भी मानव जीवन के एक आदर्श व्यक्ति हैं. वे पुत्र, बन्धु, पति, मित्र सभी रूपों में आदर्श हैं तथा वे लोक रंजक जननेता और प्रजावत्सल राजा भी हैं. उनमें शक्ति, शील और सौन्दर्य का अद्भुत सम्मिलन है.
4. रामभक्ति काव्य में प्रबंध काव्य की रचना (rachana) का विशेष महत्व है पर मुक्तक (muktak pad) पदों तथा अन्य मुक्त छंदों (muktak chhand) में भी श्रेष्ठ रचनाएँ हुई हैं.
5. रामकाव्य (ramkavy) में परंपरित ब्रजभाषा (brajbhasha) के साथ अवधी (avadhi) का प्रारंभ हुआ. जायसी और अन्य सूफियों द्वारा प्रारंभ अवधी काव्य परंपरा (avadhi kavy paranmpra) का बड़ा ही सफल और साधिकार प्रयोग रामचरितमानस में हुआ जिसने अवधी को एक मानक साहित्यिक भाषा का रूप प्रदान किया.
6. रामभक्ति धारा (rambhakti dhara) में सभी रसों का सर्वोत्तम परिपाक मिलता है.
7. सभी शैलियों (shailiya) और प्रबन्ध मुक्तक के सभी प्रचलित काव्यरूपों में रचना मिलती है.
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