रामकथा : आख्यान की नई दृष्टि II राम भक्ति काव्य II राम काव्य II रामराज्य की अवधारणा II राम काव्य परंपरा में तुलसी का स्थान II राम भक्ति काव्य पर टिप्पणी II राम भक्ति धारा
रामकथा : आख्यान की नई दृष्टि II राम
भक्ति काव्य II राम काव्य II रामराज्य की अवधारणा II राम काव्य परंपरा में तुलसी का स्थान II राम भक्ति काव्य पर टिप्पणी II राम भक्ति धारा II ramkavya parampara
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रामराज्य वर्णन |
रामराज्य वर्णन
विश्व साहित्य में रामकथ के अतिरिक्त शायद ही कोई
ऐसा आख्यान हो, जिसके इतने अधिक पाठ, अर्थ-संरचनाएं और आयाम हैं. वाल्मीकि रामायण
से लेकर अद्दावधि सृजित उपलब्ध सैकड़ों कृतियों के बावजूद उक्त आख्यान को नित नए
सन्दर्भों में आज भी लिखा जा रहा है. सामयिक प्रासंगिता के अनुकूल उसका मुल्यांकन,
पुर्नमूल्यांकन भी किया जा रहा है.
फिल्म कलाकार आशुतोष राना ने एक उपन्यास के रूप
में ‘रामराज्य’ शीर्षक से रामकथा में अनेक नवीन और मौलिक उद्भावनाएं की
हैं. श्रीराम के चरित्र को पूरी मर्यादा के साथ चित्रित करने में उन्हें सफलता मिली
है. राम वनगमन से लेकर सीता परित्याग की ग्यारह सर्गों में निबद्ध यह कथा पाठक को
बाँधे रखती है. कैकेई प्रसंग में लेखक ने अभिनव आख्यान की रचना करते हुए राम वनगमन
और भरत के राज्याभिषेक का सूत्रधार श्रीराम को ही माना है. इस हेतु वे किसी-न-किसी
प्रकार कैकेई को नीलकंठ की भूमिका का वरण करने के लिए तैयार करते हैं.
सुपर्णा-सुर्पण प्रसंग में लेखक ने यह प्रतिपादित किया
है कि वह आसक्त होकर श्रीराम के पास नहीं गई थी. रावण द्वारा अपने पति
विद्दुतजिह्न की ह्त्या का बदला वह राम रावण युद्ध के द्वारा
लेना चाहती थी. इसी प्रकार पंचवटी, लंका, हनुमान विजय पर्व-कुंभकर्ण,
विजयपर्व-विभीषण और वियज पर्व-रावण आदि पसंगों को आधुनिक बोध से संचालित
सेतुबंध रामेश्वरम् की स्थापना में पार्थिव शिवलिंग निर्माण तथा महारुद्राभिषेक के
अवसर पर आचार्य के रूप में रावण को आमंत्रित करने का विवरण अत्यंत रोचक है.
उक्त अवसर पर रावण की उपस्थिति तथा श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिए जाने की
कल्पना भी लेखक ने की है. सीता परित्याग की कथा में भी लेखक ने पूर्वक उपलब्ध
अवधारणा मूलक पाठ का अतिक्रमण करते हुए यह सिद्ध किया है कि श्रीराम से
राजधर्म का पालन कराने के लिए यह निर्णय सीता जी का ही था.
अनेक विशेषताओं के बावजूद कृति की अपनी सीमाएँ भी
हैं. लेखक ने अनेक अलौकिक कथा-प्रसंगों को विज्ञान सम्मत-तर्क की कसौटी पर
कसते हुए उसे मिथकीकरण से बाहर निकालने की कोशिश की हैं, किन्तु उसका सर्वत्र
निर्वाह नहीं हो सका है. फिर भी इस आख्यान में ऐसा बहुत कुछ है, जिससे रामकथा को
समझने की नई दृष्टि मिलती है. पात्रों को गरिमामय चरित्रांकन से इसका महत्त्व
असंदिग्ध है.
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