प्रेमचंद परंपरा के कथाकार : यशपाल II yashpal hindi writer II yashpal hindi kahanikar II yashpal hindi author II yashpal hindi sahitya II yashpal hindi lekhak II यशपाल हिंदी लेखक

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  यशपाल


सामाजिक और आर्थिक समस्याओं पर केन्द्रित कथाकार सृजन करने वाले यशपाल ने क्रान्तिकारी दृष्टि से लिखा रचनाओं से सामाजिक यर्थाथ को लोगों तक पहुंचाया है.
यशपाल ने कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, यात्रा वृत्तान्त, निबन्ध और संस्मरण विधाओं में विपुल लेखन किया. 3 दिसंबर 1903 को फिरोजपुर छावनी में जन्मे हिन्दी के क्रान्तिकारी लेखक यशपाल ने अपने समय केयर्थाथ को बहुत ही व्यापकता और संश्लिष्टता केसाथ दर्ज किया. उन्होंने जहाँ सामंतवादी-पूंजीवादी मनोवृत्तियों पर प्रहार किया, वहीँ उच्चवर्गीय नैतिकता, झूठी अभिजात्य भावना और मध्यवर्गीय आडंबरों की निर्ममता से खबर ली. उनकी मूल दृष्टि मार्क्सवादी समाज दर्शन से प्रभावित रही. आलोचक भी यह मानते हैं कि यशपाल एक साक्षात्कार में कहा था, ‘हो सकता है मेरी कहानियों में मार्क्सवादी प्रभाव हो, परन्तु मैं कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य कभी नहीं रहा.’ उनके पात्र जीवन तथा उत्पन्न समस्याओं के साथ संघर्ष करते हुए दिखाई देते हैं उनके पात्र पर परंपरा और मर्यादा का कोई प्रभाव नहीं है.

यशपाल को साम्राज्यवादी शासन, अत्याचार और एक तरह के संक्रमणकाल की विषम परिस्थितियों o भोगने का अवसर प्राप्त हुआ था. उन्होंने इस माहौल को एक क्रान्तिकारी के रूप में देखा था. यशपाल की यह दृष्टि उनकी रचनाओ में भी दिखाई देती है. उन्होंने यह महसूस किया कि मनुष्य के दुःख का कारण वर्गीय भिन्नता है. मनुष्य के लिए मर्यादा और नैतिकता के मायने बदल जाते हैं. आर्थिक परिस्थितियों के कारण जो वह करता है, वह ही उसकी मर्यादा और नैतिकता हो जाती है.

यशपाल का बचपन अंधविश्वास और रुढ़िवादी समाज में बीता. उनका कुछ समय गुरुकुल में बीता और वहाँ उन्हें वैदिक शिक्षा दी गई. उन्होंने यह महसूस किया कि संस्कारित मनुष्य किस तरह साम्राज्यवादी अत्याचार सहनकर रहा है. आर्थिक विपन्नता के कारण समाज में अंधविश्वास बढ़ रहा है. इन तमाम विसंगतियों को उन्होंने अपनी कथावस्तु का आधार बनाया.

उनकी अनेक कहानियाँ यौन समस्याओं से भी संबद्ध हैं. हालांकि अमृतराय ने ऐसी कहानियों को सड़ी-गली कहानियाँ कहा था, लेकिन इस संबंध में यशपाल के दृष्टिकोण को नकारा नहीं जा सकता. यशपाल के शब्दों में ‘मैं यदि कल्पना में उड़ना चाहूँ तो भविष्य की ओर उड़ने की कामना कर सकता हूँ, अतीत की ओर नहीं.’ स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने की प्रक्रिया ने यशपाल ने अपने उपन्यासों के माध्यम से भी राजनीति, समाज, प्रेम और विवाह तथा कभी-कभी ऐतिहासिक विषयों पर अपनी कलम चलाई.

प्रेमचन्द और रेणु की तरह ही यशपाल को भी पाठकों ने असीम स्नेह दिया, लेकिन कुछ आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा ने उन्हें सदैव अपनी आलोचना के निशाने पर रखा. क्रांतिकारियों के जीवन पर प्रामाणिक लेखन करने वाले लेखक सुधीर विद्यार्थी मानते हैं कि यशपाल एक बड़े कथाकार हैं, लेकिन उनका क्रन्तिकारी जीवन भरोसे का नहीं रहा. बहरहाल प्रेमचन्द की परंपरा के कथाकार यशपाल को ईमानदार क्रान्तिकारी के रूप में न सही, एक बेहतरीन कथाकार के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा.

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