स्फुट काव्य धारा परंपरा II स्फुट काव्य धारा परंपरा II futkal kavya II फुटकल काव्य II footkal kavy dhara II हिन्दी साहित्य फुटकल काव्यधारा
स्फुट काव्य धारा परंपरा II स्फुट काव्य धारा परंपरा II futkal kavya II फुटकल काव्य II footkal kavy dhara II हिन्दी साहित्य फुटकल काव्यधारा
आदिकाल में उपर्युक्त चार धाराओं की रचनाओं के अतिरिक्त कुछ स्फुटरचनाकार आते हैं. जिनका स्वयँ में महत्वपूर्ण स्थान है, साथ ही आगामी धाराओं के प्रवर्तन में भी इन रचनाकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है.
इनमें पहला नाम है – अमीर खुसरों. खुसरो की फारसी का प्रसिद्ध कवि है जिसकी कई प्रसिद्ध मसनवियाँ फारसी साहित्य की अमूल्य निधि है. हिन्दी खड़ी बोली में पहेलियाँ, मुकरियाँ, गीत और गजल के रूप में उनकी रचनाएँ मिलती हैं. इन रचनाओं के भाषा रूप में तो व्यापक परिवर्तन हो गया है क्योंकि इनकी प्राचीन हस्तलिखित प्रतियाँ नहीं मिली हैं. स्फुट उल्लेखों और संकलनों से संगृहित करके उनकी रचनाओं का एक संकलन नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित हुआ है. इन रचनाओं की महत्ता इस बात में है कि खड़ी बोली में कविता का यह प्रयास प्राचीनतम है. साथ ही इसमें लोक जीवन और लोक तत्वों का बड़ा ही मनोहारी रूप हमें प्राप्त होता है. उनकी गजलों और दोहों में भावना मुलक रहस्यवाद की वह विवृत्ति मिलती है जिसका प्रस्फुटन आगे चलकर सूफी काव्यधारा के कवियों में मिलता है.
दूसरा महत्वपूर्ण नाम है विद्दापति का. विद्दापति अपभ्रंश में प्रबंधकार कवि के रूप में तो प्रतिष्ठित है ही, हिन्दी की मैथिली बोली में लिखे हुए उनके पदों में प्रेम की गहरी व्यंजना, भाषा की लोच, गीति काव्य की संगुफित आत्माभिव्यक्ति और गेयता और पदों में लालित्य का ऐसा संयोजन है कि नि:संदेह उनको हिन्दी के शीर्ष कवियों में स्थान मिल जाता है. विद्दापति के पदों ने सूरदास और कृष्ण भक्ति शाखा के अन्य कवियों के लिए पाथेय प्रदान किया.
तीसरा प्रमुख नाम है मुल्ला दाउद का. इनको सूफी प्रेमाख्यानक कृति ‘चंदायन’ में लोरिक और चाँद की प्रेम कहानी का दोहा चौपाई की शैली में वर्णन किया गया है. लोकभाषा अवधी में लिखा हुआ यह काव्य लोक तत्व और लोकगंध से सुवासित है. इसी परंपरा में आगे चलकर कुतुबन की ‘मिरगावती’ और जायसी की ‘पदुमावती’ की रचना हुई. इन रचनाओं के तुलनात्मक अध्ययन के यह सिद्ध होता है, कि ‘चंदायन’ ने इन दोनों परवर्ती रचनाओं को व्यापक रूप से प्रभावित किया है.
चौथा प्रमुख नाम है सूरदास का. इनकी एक रचना ‘रामराज्य’ बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना से प्रकाशित हुई है जिसका प्रतिपद्द राम के जीवन के बालकाण्ड तक के सन्दर्भ की कथा है. इसकी भाषा अवधी है और शैली दोहा-चौपाई की. तुलसीदास के ‘रामचरित मानस’ w 150 वर्ष पुरानी राम कथा पर उसी भाषा और शैली में लिखी इस रचना का अपना विशेष महत्त्व है. इस रचना का अच्छा प्रभाव तुलसीदास पर देखा जा सकता है.
आदिकाल में दामोदर कवि की रचना ‘उक्ति व्यक्ति प्रकरण’ गद्द में लिखी हुई मिली है जिसकी भाषा कोशली है जो मध्यकालीन साहित्यिक अवधी का पूर्वरूप हा. इस रचना का तथा रोडा कृत ‘राउर बेल’, किसी कवि की कृति ‘वसन्त विलास’ ज्योतिरीश्वर ठाकुर को रचना ‘वर्णरत्नाकर’ का भाषा और समसामयिक जीवन के अध्ययन की दृष्टि से महत्व है.
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