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हिन्दी का शब्द-भण्डार हिंदी भाषा के शब्द भंडार के स्रोतों की संक्षेप में चर्चा कीजिए II हिंदी के शब्द भंडार को विस्तार से समझाइए II hindi bhasha ke shabd bhandar II shabd bhandar in hindi

हिन्दी का शब्द-भण्डार हिंदी भाषा के शब्द भंडार के स्रोतों की संक्षेप में चर्चा कीजिए II हिंदी के शब्द भंडार को विस्तार से समझाइए II hindi bhasha ke shabd bhandar II shabd bhandar in hindi किसी भाषा में जिन शब्दों का प्रयोग होता है, उनके समूह को उस भाषा का शब्द भण्डार या शब्द समूह कहते हैं. हिन्दी भाषा के शब्द भण्डार में चार प्रकार से शब्द है :- 1.                 तत्सम   ‘ तत्सम’ में ‘तत्’ का अर्थ है ‘वह’ अर्थात् ‘ संस्कृत’ और ‘सम’ का अर्थ है ‘समान’. अर्थात ‘ तत्सम’ उन शब्दों को कहते हैं जो संस्कृत के समान हो अथवा संस्कृत जैसे हों. उदहारण के लिए हिन्दी में कृष्ण , गृह , कर्म’ हस्त , धर्म आदि शब्द तत्सम हैं. वस्तुतः ये वे शब्द हैं जो संस्कृत भाषा से बिना किसी ध्वनि परिवर्तन के हिन्दी में आ गये हैं. हिन्दी में स्रोत की दृष्टि से ‘ तत्सम’ शब्द चार प्रकार के है : 1.    प्राकृतों (पाली, प्राकृत, अपभ्रंश) से होते आने वाले शब्द : अचल, अघ, अचला, काल, कुसुम, जंतु, दण्ड आदि. इस वर्ग के श...

मेरे राम को खादी पहनाना : II गांधी जी की राम राज्य की अवधारणा को समझाइए II राम राज्य की परिकल्पना II Ram II Mahatma Gandhi II mahatma gandhi ka ramraj

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मेरे राम को खादी पहनाना : II  गांधी जी की राम राज्य की अवधारणा को समझाइए II राम राज्य की परिकल्पना II Ram II Mahatma Gandhi II  mahatma gandhi ka ramraj रामनाम को जीवन का महामंत्र मानने वाले महात्मागाँधी भी एक बार जन्मभूमि के दर्शन के लिए अयोध्या पहुंचते थे. गाँधी जी के दर्शन के लिए अयोध्या पहुँचे थे. गाँधी जी की अयोध्या यात्रा का विवरण ‘गाँधी वाड्मय’ खण्ड 19 पृष्ठ संख्या 461 पर दिया गया है जो ‘नवजीवन’ अखबार में मार्च 1921 में प्रकाशित हुआ था. महात्मा गाँधी ने इस यात्रा का विवरण इस प्रकार बताया , ‘ अयोध्या में जहाँ भगवान रामचन्द्र का जन्म हुआ कहा जाता है, उसी स्थान पर एक छोटा सा मंदिर है. जब मैं अयोध्या पहुंचा तो वहाँ मुझे ले जाया गया. साथी श्रद्धालुओं ने मुझे सुझाव दिया कि मैं पुजारी से विनती करूँ कि वह भगवान सीता-राम की मूर्तियों के लिए पवित्र खादी का उपयोग करें. मैंने विनती तो की लेकिन उस पर अमल शायद ही हुआ हो.जब मैं दर्शन करने गया, तब मैंने मूर्तियों को मलमल और जरी के वस्त्रों में पाया. यदि मुझ में तुलसीदास जी जितनी गाढ़ भक्ति की सामर्थ्य होती तो मैं भी उस समय तुलस...

स्फुट काव्य धारा परंपरा II स्फुट काव्य धारा परंपरा II futkal kavya II फुटकल काव्य II footkal kavy dhara II हिन्दी साहित्य फुटकल काव्यधारा

स्फुट काव्य धारा परंपरा II स्फुट काव्य धारा परंपरा II futkal kavya II फुटकल काव्य II footkal kavy dhara II हिन्दी साहित्य फुटकल काव्यधारा   आदिकाल में उपर्युक्त चार धाराओं की रचनाओं के अतिरिक्त कुछ स्फुटरचनाकार आते हैं. जिनका स्वयँ में महत्वपूर्ण स्थान है, साथ ही आगामी धाराओं के प्रवर्तन में भी इन रचनाकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है. इनमें पहला नाम है – अमीर खुसरों. खुसरो की फारसी का प्रसिद्ध कवि है जिसकी कई प्रसिद्ध मसनवियाँ फारसी साहित्य की अमूल्य निधि है. हिन्दी खड़ी बोली में पहेलियाँ, मुकरियाँ, गीत और गजल के रूप में उनकी रचनाएँ मिलती हैं. इन रचनाओं के भाषा रूप में तो व्यापक परिवर्तन हो गया है क्योंकि इनकी प्राचीन हस्तलिखित प्रतियाँ नहीं मिली हैं. स्फुट उल्लेखों और संकलनों से संगृहित करके उनकी रचनाओं का एक संकलन नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित हुआ है. इन रचनाओं की महत्ता इस बात में है कि खड़ी बोली में कविता का यह प्रयास प्राचीनतम है. साथ ही इसमें लोक जीवन और लोक तत्वों का बड़ा ही मनोहारी रूप हमें प्राप्त होता है. उनकी गजलों और दोहों में भावना मुलक रहस्यवाद की वह विवृत्ति मिलती है...

पहाड़ी उपभाषा वर्ग : पहाड़ी हिंदी की बोलियाँ II पहाड़ी भाषाएँ II पहाड़ी हिंदी की बोलियाँ II पहाड़ी हिन्दी II pahadi bhasha II pahadi hindi II pahadi hindi ki boliyan II pahadi hindi ki boli kya hai

पहाड़ी उपभाषा वर्ग : पहाड़ी हिंदी की बोलियाँ II पहाड़ी भाषाएँ II पहाड़ी हिंदी की बोलियाँ II पहाड़ी हिन्दी II pahadi bhasha II pahadi hindi II pahadi hindi ki boliyan II pahadi hindi ki boli kya hai पूर्वी पहाड़ी – पूर्वी पहाड़ी बोली को नेपाली भी कहा जाता है. यह नेपाल की बोली है. इसे नेपाली , पर्वतीय , गुरखाली एवं खसकुरा भी कहते हैं. इसका केन्द्र काठमांडू है. नेपाल राज्य की राजभाषा का महत्त्व प्राप्त करने के कारण इसमें आधुनिक काल में पर्याप्त साहित्य-रचना भी हुई है. पूर्वकाल में इस क्षेत्र की साहित्यिक भाषा हिन्दी ही रही है. मध्य पहाड़ी – मध्य पहाड़ी के अंतर्गत दो बोलियाँ आती हैं – कुमायूँनी और गढ़वाली . कुमायूँनी का क्षेत्र अल्मोड़ा , नैनीताल हैं तथा गढ़वाली का गढ़वाल तथा मसूरी का निकटवर्ती भाग है. इन दोनों ही बोलियों में पर्याप्त समानता के कारण इन्हें एक साथ मध्य पहाड़ी कहा जाता है. इसका कोई साहित्यिक महत्त्व नहीं है. इन क्षेत्रों में साहित्यिक हिन्दी पूर्णत: अपना ली गयी है. ये बोलियाँ ग्रामीण जनों की बोलचाल में प्रचलित हैं. पश्चिमी पहाड़ी – पश्चिमी पहाड़ी क...

हिन्दी की उप भाषाएँ II हिन्दी की उपभाषाएँ और बोलियाँ II पूर्वी हिंदी की बोलियाँ II पश्चिमी हिंदी की प्रमुख बोलियां II hindi bhasha ki upbhasha hai II hindi ki kitni upbhasha hai II hindi ki kitni upbhasha aaye hain

हिन्दी की उप भाषाएँ II हिन्दी की उपभाषाएँ और बोलियाँ II पूर्वी हिंदी की बोलियाँ II पश्चिमी हिंदी की प्रमुख बोलियां II hindi bhasha ki upbhasha hai II hindi ki kitni upbhasha hai II hindi ki kitni upbhasha aaye hain डॉ. ग्रियर्सन ने हिन्दी की विभिन्न बोलियों में आठ की गणना की है और इन्हें दो प्रधान वर्गों में बांटा है. एक वर्ग को उन्होंने पश्चिमी हिन्दी कहा है और दूसरे को पूर्वी हिन्दी . उनके अनुसार ये ही दो हिन्दी की उपभाषाएँ हैं. उन्होंने पहाड़ी , बिहारी , राजस्थानी को अलग भाषाओँ के रूप में स्वीकार किया है. डॉ. धीरेन्द्र वर्मा आदि कुछ विद्वानों का मत है कि ये तीन वर्ग भी हिन्दी के उपभाषा वर्ग ही हैं. इनमें बोली जानेवाली बोलियों के कुछ समूह हैं पर उन सभी का साहित्यिक रूप हिन्दी ही है. इन विभिन्न वर्गों की बोलियों का हिन्दी के परिनिष्ठित रूप से इतनी निकटता भी है कि इन्हें स्वतंत्र भाषा न मानकर हिन्दी की उपभाषा मानना है उपयुक्त हैं. इन प्रत्येक वर्गों में कई-कई बोलियों का समूह है जो परस्पर एक-दूसरे के निकट है तथा भाषिक एकरूपता के कारण उन्हें एक उपभाषा कहा भी जा...

रासो काव्यधारा : चार रासो काव्य के नाम II हिन्दी साहित्य में रासो काव्य परम्परा II raso kavya dhara II prithviraj raso ka kavya roop II prithviraj raso ka rachnakal hai II prithviraj raso ka kavya roop

रासो काव्यधारा : चार रासो काव्य के नाम II हिन्दी साहित्य में रासो काव्य परम्परा II raso kavya dhara II prithviraj raso ka kavya roop II prithviraj raso ka rachnakal hai II prithviraj raso ka kavya roop II हिन्दी साहित्य के आदिकाल का नामकरण ‘ वीरगाथा काल’ ( virgatha kal ) करते समय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सामने खोज रिपोर्टों और पुराने संग्रह ग्रथों की सूचनाओं के आधार पर लगभग एक दर्जन रासो संज्ञक काव्यों का नाम था जिसमें प्रमुख हैं – पृथ्वीराज रासो ( चंदरबरदाई ), बीसलदेव रासो ( नरपति नाल्ह ), खुमान रासो ( दलपति विजय ), हम्मीर रासो ( शारंगधर ), विजयपाल रासो ( नाल्लसिंह ), परमाल रासो ( जगनिक रासो ) तथा गैर रासो रचनाएँ – जयचन्द्र प्रकाश ( भट्ट केदार ), जयमयंक जस चन्द्रिका ( मधुकर ). ये कवि अधिकांशत: चारण हैं और उन्होंने किसी न किसी राजा को अपना चरित नायक बनाकर काव्य लिखा है. इनमें से सभी रचनाएँ संदिग्ध स्थिति में हैं. कुछ रचनाओं का तो अभी पूर्णपाठ भी उपलब्ध नहीं है और जिनका पाठ उपलब्ध है, उनके प्रामाणिक पाठ और रचनाकाल की स्थिति स्पष्ट नहीं है. अपभ्रंश के...

निपात II निपात शब्द किसे कहते हैं II निपात शब्द का अर्थ II निपात का हिंदी अर्थ II निपात examples II अनुपात के प्रकार II निपात के कितने भेद होते हैं II nipat in hindi II what is nipat in hindi II types of nipat in hindi

निपात II निपात शब्द किसे कहते हैं II निपात शब्द का अर्थ II निपात का हिंदी अर्थ II निपात examples II अनुपात के प्रकार II निपात के कितने भेद होते हैं II nipat in hindi II what is nipat in hindi II types of nipat in hindi यास्क के अनुसार निपात शब्द के अनेक अर्थ हैं, इसलिए ये निपात कहे जाते हैं-उच्चावच्चेषु अर्थेषु निपतन्तीती निपात: यह पाद का पूरण करने वाला होता है – ‘निपात: पादपुरणा:’ परिभाषा : निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द , शब्द समूह अथवा पूरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है. इसके अलावा निपात , सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं हैं. हाँ, वाक्य में इसके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थ व्यक्त होता है. निपात का कोई लिंग, वचन नहीं होता. मूलतः इसका प्रयोग अव्ययों के लिए होता है. यद्दपि की निपात शुद्ध अव्यय नहीं है, लेकिन सामान्य रूप से यह अव्यय ही है. इसका प्रयोग अधिकतर शब्द-समूह के बाद होता है. उदाहरणार्थ : 1. क्या आप सुन रहे हैं? (क्या निपात है)            2. इस बात को एक मुर्ख भी जानता ...